जो मजदूर हैं,
वो मजबूर हैं
और,
जिनके पास पैसे हैं
ना जाने कैसे-कैसे हैं
जो श्रमशूर हैं
सुख से दूर हैं
और,
जो करते हैं श्रम-शोषन
उनका सुखद है भरण-पोशन
धमन-भठ्ठि मे,
तन को तपाकर
लबों पर मुस्कान के सहारे,
अश्रु-बिन्दु को छुपाकर
जो हाथ मे करनी और फीता लिए
आपको बनाते हैं रहने योग्य,
मीनारों पर
जो हाथ मे धरे आपके गाडीके स्टेरिंग को
मोडते है लेफ्ट-राईट,राईट ,लेफ्ट
आपके ईशारों पर
जिनके हाथ के कौशल ने,
अता की आप को ऊची मीनारें,
ढह जाती हैं उन्ही के अक्सर
बरसात मे घर की दीवारें
जो थाम के स्टेरिंग को
आप के ईशारे पर चल्ते हैं,
कठिन परिस्थितियों मे,
सैकडों मील दूर घर, वो पैदल निकलते हैं
तभी तो कहता हूं,
जो मजदूर हैं,
वो मजबूर हैं
और,
जिनके पास पैसे हैं
ना जाने कैसे-कैसे हे